एक समय वह था जब कीवी, ब्लूबेरी, ड्रैगन फ्रूट आदि जैसे विदेशी फल सिर्फ किसी फाइव स्टार होटल के कॉन्टिनेंटल फूड मेनू में ही मिलते थे। आज एक समय यह है कि आप अपने स्थानीय सुपर मार्केट से इन्हें आसानी से खरीद सकते हैं।
विदेशी से मतलब है ‘किसी दूर के विदेशी देश में उगाया गया या उस फल की विशेषता वाला फल’। हालांकि आमतौर पर यह उष्णकटिबंधीय फलों से ताल्लुक रखता है। जैसे-जैसे भारत में वैश्विक व्यंजन बढ़ते जा रहे हैं, वैसे-वैसे विदेशी फलों और सब्जियों की घरेलु मांग भी बढ़ती जा रही है। एक अनुमान के अनुसार भारत हर साल 4,00,000 टन विदेशी फलों का आयात करता है जिनकी अमूमन कीमत 40 अरब रूपए है। माना जाता है कि विदेशी फलों का मार्केट करीब ₹3000 करोड़ का है। स्थानीय फलों की तुलना में विदेशी फलों की कीमत अधिक होती है और इन्हें उनके मुकाबले करीब 50% अधिक दाम में बेचा जाता है।
इन विदेशी फलों की मांग सिर्फ भारत के बड़े शहरों में ही नहीं है। टियर II और टियर III शहरों जैसे नागपुर, कानपुर और रायपुर आदि में भी इनकी मांग लगातार बढ़ती जा रही है।
इतना ही नहीं 2021 में विदेशी फलों की मांग इतनी बढ़ गयी थी कि केंद्र सरकार ने फैसला लिया कि वह भारत में 10 व्यावसायिक रूप से बेची जा सकने वाली फल की फसलों को बढ़ावा देंगे। यह संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के सहयोग का परिणाम था।
इस निर्देश के अनुसार, राज्य बागवानी को इनके विस्तार के लिए टारगेट दिए गए थे। 2021 में विदेशी फलों के लिए 8,951 हेक्टेयर और स्वदेशी फलों के लिए 7,154 हेक्टेयर जमीन अलग से रखने के लिए कहा गया था। इन 10 विदेशी फलों में एवोकाडो, ब्लूबेरी, ड्रैगनफ्रूट, अंजीर, कीवी, मैंगोस्टीन, ख़ुरमा, कृष्णकमल फल, रामबूटन और स्ट्रॉबेरी शामिल थे। आइए इन फलों की फसलों पर करीब से नज़र डालें:
1. एवोकाडो

एवोकाडो उन भारतीयों के बीच काफी प्रसिद्ध है जो अपनी सेहत पर काफी ध्यान देते हैं। यह हरी रंग की त्वचा वाला अंडाकार आकार का एक फल है जो पूरी तरह से पकने के बाद गहरे बैंगनी रंग का हो जाता है। यह बहुत ही पौष्टिक होता है। इसमें 4% प्रोटीन और लगभग 30% फैट होता है। माना जाता है कि इसकी उत्पत्ति दक्षिण अमेरिका यानी दक्षिण-मध्य मैक्सिको और ग्वाटेमाला में हुई थी। भारत के महाराष्ट्र, तमिलनाडु और कर्णाटक में कई तरह के वेस्ट इंडियन, ग्वाटेमाला और मैक्सिकन एवोकाडो की किस्मों की खेती की जाती है। अब इसकी खेती को बढ़ाकर दक्षिण भारत और उत्तर-पूर्व के आर्द्र अर्ध-उष्णकटिबंधीय हिस्सों में भी ले जाया जाएगा।
एक एवोकाडो के पेड़ में 100 से 500 फल लग सकते हैं। अगर सिक्किम की बात करें तो वहां पर 10-15 साल पुराने पेड़ों से करीब 300-400 फल मिलते हैं। भारत में एवोकाडो एक व्यावसायिक फसल नहीं है। हालांकि, भारत की जलवायु एक फायदेमंद एवोकाडो खेती के लिए बिलकुल सही है। एवोकाडो दुनिया भर में बेहद प्रसिद्ध है लेकिन भारत में अभी तक इसने वह प्रसिद्धि नहीं पाई है। दूसरे मीठे विदेशी फलों की तुलना में एवोकाडो का स्वाद काफी हल्का होता है और इसे अक्सर नमकीन व्यंजनों में उपयोग किया जाता है। देखा जाए तो इसका स्वाद एक आम भारतीय के स्वाद से मेल नहीं खाता है। हालांकि, पूर्वोत्तर में इसकी खेती जमकर की जाती है और उतने ही उत्साह से इन्हें खाया भी जाता है। हालंकि देश के बाकी हिस्सों में इसकी खपत बढ़ने में अभी थोड़ा समय लगेगा। अभी का लक्ष्य है कि भारत में एवोकाडो की खेती की जाए ताकि विदेशी पर्यटकों के लिए इनका इस्तेमाल हो सके।
2. ब्लूबेरी

ब्लूबेरी उत्तरी अमेरिका के मूल निवासी हैं। पिछले कुछ सालों में यह शहरी लोगों के बीच काफी प्रसिद्ध हो गई है। हालंकि, इसकी ऊंची कीमतों के चलते (125 ग्राम ताजी ब्लूबेरी के लिए करीब 250 रूपए) हर कोई इसे रोजाना नहीं खा पाता है। कॉन्टिनेंटल डेसर्ट के लिए ब्लूबेरी एक प्रसिद्ध सामग्री है।
इस मीठे फल की बढ़ती लोकप्रियता के कारण अब घरेलू स्तर पर इन्हें उगाने का दबाव बढ़ चुका है। ब्लूबेरी को सिर्फ पहाड़ों में उगाया जा सकता है। इसलिए शुरूआती प्रोजेक्ट को पालमपुर, हिमाचल के कृषि विश्वविद्यालय के फल वैज्ञानिकों द्वारा उगाया जा रहा है। कुआला के कुछ किसानों के साथ बागवानी विभाग वहां सफलतापूर्वक ब्लूबेरी उगा पाया। बाजार का विश्लेषण के बाद मई 2022 में हॉर्टिफ्रट और आईजी बेरीज ने भारत में बेरी उत्पादन को बढ़ाने के लिए $20 मिलियन के निवेश की घोषणा की है।
3. ड्रैगनफ्रूट

ड्रैगनफ्रूट को भारत में दक्षिण-पूर्व एशिया से आयात किया जाता है। इसको यह नाम इसकी चमकदार चमड़े की त्वचा से मिला है जो काँटों से ढकी होती है। 2014 के बाद से भारत में इसकी काफी मांग है। इतना ही नहीं पिछले कुछ सालों में यह भारतीय किसानों के बीच भी काफी लोकप्रिय हो गया है। ड्रैगनफ्रूट के साथ सबसे बढ़िया चीज है कि इसकी खेती करना और इसका रखरखाव करना काफी आसान है। यह कैक्टि परिवार से ताल्लुक रखता है। इसे अर्ध-शुष्क और शुष्क क्षेत्रों में भी अच्छी तरह उगाया जा सकता है क्योंकि इसे ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती है। एक ड्रैगनफ्रूट का वजन करीब 200 से 700 ग्राम होता है और एक एकड़ जमीन पर 5 टन तक की फसल उगाई जा सकती है।
आजकल कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, ओडिशा, महाराष्ट्र, गुजरात और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के साथ-साथ पूर्वोत्तर में भी में ड्रैगनफ्रूट की खेती की जाती है। करीब 3000-4000 हेक्टेयर जमीन पर ड्रैगनफ्रूट की खेती की जाती है और यह सभी राज्य मिलकर करीब 12,000 टन प्रति वर्ष ड्रैगनफ्रूट का उत्पादन करते हैं।
शहरों में इन फलों की काफी मांग है और यह आसानी से 50 से 120 रूपए प्रति किलो में मिल जाते हैं। इतना ही नहीं पर्शियन गल्फ देशों, यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका में इनके निर्यात के अच्छे अवसर हैं।
4. अंजीर

विश्व में लगभग 1.26 मिलियन टन अंजीर का उत्पादन होता है। अंजीर को फिग्स के नाम से भी जाना जाता है। अंजीर आसानी से खराब होने वाले फल हैं। इन्हें सिर्फ 2-3 दिन के लिए ही रेफ्रिजरेट किया जा सकता है। इसलिए इन्हें ताजा, सुखाकर युआ संरक्षित (जैम के रूप में) रखा जाता है।
भारत में अंजीर की खेती लगभग 5,600 हेक्टेयर जमीन पर की जाती है। हम सालाना लगभग 13,802 टन अंजीर का उत्पादन करते हैं। इनकी खेती कर्नाटक, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात और उत्तर प्रदेश में की जाती है। इनमें से लगभग 90-92% अंजीर का उत्पादन महाराष्ट्र के पुणे जिले में किया जाता है। भारत में उगाई जाने वाली सबसे लोकप्रिय अंजीर की किस्म “पूना” है।
आंकड़े बताते हैं कि अंजीर की खेती बहुत फायदेमंद है और यह नए क्षेत्रों तक फैल रही है। उदाहरण के लिए तेलंगाना ने अकेले 2021-22 में 1607 मीट्रिक टन अंजीर का उत्पादन किया था। उन्हें बागवानी के एकीकृत विकास मिशन से भी सहायता मिली थी। इसी तरह महाराष्ट्र के पुणे जिले के पुरंदर तालुका से जीआई टैग वाले ताजा अंजीर इस साल जर्मनी को निर्यात किए गए थे।
5. कीवी

यह हरी त्वचा वाले फल न्यूजीलैंड से आए हैं। पिछले एक दशक से यह फल भारतीय खाने के टेबल पर लगातार दिखाई दे रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार कीवी निर्यात हर साल 25% की तेजी से बढ़ रहा है। अभी भारत हर साल न्यूजीलैंडसे करीब 4000 टन कीवी निर्यात करता है। इसलिए ही अब भारत में भी इनका उत्पादन शुरू हो चुका है।
आज भारत में 6.47 हजार टन कीवी फलों का उत्पादन होता है। इन्हें अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मिजोरम, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, मणिपुर और जम्मू कश्मीर में उगाया जाता है। कीवी उत्पादन में अरुणाचल प्रदेश सबसे आगे है। यह भारत में उत्पादित कुल कीवी फल के 56.5% हिस्से का जिम्मेदार है। अक्टूबर 2020 में अरुणाचल प्रदेश भारत का ऐसा पहला राज्य बन गया जिसने कीवी की खेती के लिए जैविक प्रमाणीकरण प्राप्त किया।
कीवी काफी पौष्टिक होते हैं और इनकी खेती काफी फायदेमंद होती है। यह काफी अच्छे रिटर्न देता है। आमतौर पर यह सालाना प्रति हेक्टेयर पर 4 से 5 लाख रूपए कमा के दे सकता है। हालांकि, न्यूजीलैंड के कीवी जैसा उत्पादन करने के लिए बेहतर रोपण सामग्री, फल उगाने की सही जागरूकता, बेहतर भंडारण सुविधाएं और पर्याप्त पैकिंग आदि की जरूरत होती है। कीवी का इस्तेमाल जूस, वाइन, स्पिरिट, कैंडी आदि में भी किया जाता है इसलिए उनकी प्रसंस्करण यूनिट भी सेटअप की ज सकती है।
6. मैंगोस्टीन

मैंगोस्टीन फलों का खोल सख्त गहरे बैंगनी रंग का होता है जिसके नीचे एक नाजुक और स्वादिष्ट सफेद फल होता है। यह दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों का मूल निवासी है, लेकिन दक्षिण भारत के उष्णकटिबंधीय जलवायु में अच्छी तरह से उगता है।
इन फलों को आमतौर पर ताजा बेचा जाता है लेकिन इन्हें जैली, स्क्वैश, सिरप और डिब्बाबंद फल बनाने के लिए भी प्रोसेस किया जा सकता है। इतना ही नहीं इसके छिलके और बीज औषधी की तरह भी काम करते हैं। इनके उपयोग से गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल संक्रमण, त्वचा का इन्फेक्शन और मूत्र पथ के संक्रमण जैसी चीजों का इलाज किया जा सकता है।
इसलिए इस फल की बाजार में काफी डिमांड है और इन्हें ऊंची कीमतों पर बेचा जाता है। इसका पेड़ बड़ा होने में पांच साल लेता है मगर उसके बाद कई दशकों तक बना रहता है। यह पेड़ काफी मजबूत होते हैं और कुछ दिनों तक जलभराव का सामना कर सकते हैं। इसलिए यह फल केरल के किसानों के लिए बहुत बढ़िया हैं। इसकी लोकप्रियता के चलते ही केरल के किसानों ने अपनी जायफल की फसल की जगह मैंगोस्टीन की फसल लगानी शुरू कर दी है। केरल मैंगोस्टीन का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। केरल हर साल 1,000 टन मैंगोस्टीन का उत्पादन करता है और इसके बाद तमिल नाडू आता है जो 200 टन का उत्पादन करता है।
7. ख़ुरमा

ख़ुरमा चीन के मूल निवासी हैं। हालंकि आज भारत में जो इनकी किस्म पाई जाती है उसे 1921 में यूयोपीय लोगों द्वारा कुल्लू, हिमाचल प्रदेश में पेश किया गया था। आज इन्हें हिमाचल प्रदेश, कश्मीर, उत्तराखंड और निलगिरी पहाड़ियों में उगाया जाता है।
ये टमाटर की तरह दिखते हैं लेकिन यह नारंगी गूदा, रेशेदार बनावट, और पूरी तरह पक जाने पर मीठे होते हैं। इन्हें अगर 0-2 डिग्री सेल्सियस तापमान में रखा जाए तो यह दो महीने तक चल सकते हैं। इन्हें सुखाकर भी संरक्षित किया जा सकता है।
ख़ुरमा की खेती उन परिस्थितियों में की जा सकती है जिनमें सेब की खेती की जाती है। सेब के पेड़ों की तरह ही ख़ुरमा के पेड़ों को भी बड़ा होने में और फल लगने में 4-5 साल लगते हैं। यह पेड़ अधिक सर्दी में भी बने रह सकते हैं। इसलिए यह पहाड़ियों पर उगाने के लिए आदर्श होते हैं। हिमाचल प्रदेश के कई जिले हर साल करीब 3000 टन खुरमा का उत्पादन करते हैं। सीजन के समय इन्हें 100 रूपए तक बेचा जा सकता है और सीजन के बाद यह बढ़कर 150-300 रूपए हो जाता है। अधिक डिमांड और कम उपलब्धता के कारण जो लोग इन्हें उगाते हैं उन्हें काफी फायदा होता है।
8. कृष्णकमल फल

कृष्णकमल फल ब्राजील का मूल निवासी है। यह दुनिया भर के उष्णकटिबंधीय भागों में बहुत अच्छी तरह से उगता है। इसका स्वाद इसे प्रसंस्कृत खाद्य उद्योग के लिए एक बेहतर फल बनाता है जिसे जूस और कॉन्संट्रेट उत्पादन के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसमें कई औषधीय गुण भी होते हैं। रिसर्च के मुताबिक इसके जरिए अस्थमा से लेकर गैस्ट्रिक कैंसर तक कई तरह की बीमारियों का इलाज किया जा सकता है।
भारत में कृष्णकमल फल की शुरुआत बीसवीं सदी की शुरुआत में हुई थी।हालांकि इसकी खेती कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु के कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित थी। पिछले दशक में इसकी खेती बढ़कर उत्तर और पूर्वी भारत (मिजोरम, नागालैंड, मणिपुर और सिक्किम) तक पहुँच चुकी है। आज 9.11 हजार हेक्टेयर जमीन पर इस फल की खेती की जाती है और हर साल करीब 45.82 हजार टन फल का उत्पादन होता है। इन क्षत्रों में कृष्णकमल फल की खेती को और बढ़ाया जा सकता है क्योंकि यह इसकी खेती के लिए अनुकूल हैं।
9. रामबूटन

रामबूटन भारतीय लीची के परिवार से ताल्लुक रखता है। यह इंडोनेशिया, मलेशिया और दक्षिणी थाईलैंड का मूल निवासी है। यह उष्णकटिबंधीय वातावरण में उगते हैं इसलिए दक्षिण भारत इनकी खेती के लिए काफी बेहतर माना जाता है।
लीची से अलग रामबूटन के फल लंबे, घने गुलाबी और लाल “बालों” से ढके होते हैं। हर फल करीब 25-30 ग्राम का होता है और यह सफ़ेद, रसीले और मीठे होते हैं। लंबे समय के रूप से देखें तो रामबूटन के निर्यात की काफी बेहतर संभावनाएं हैं। इन्हें लीची की तरह ही पल्प, फ्रूट कंसन्ट्रेट, जैली आदि की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है। यह विटामिन सी और चीनी से भरपूर होता है। यह देश की पोषण सुरक्षा में योगदान करने के लिए एक आदर्श विकल्प बन सकता है।
भारत में रामबूटन की खेती ज्यादातर दक्षिण भारत के घरेलू बगीचों में की जाती है जैसे केरल के जिले, तमिलनाडु का नीलगिरी जिला, कर्नाटक के दक्षिण कन्नड़ और कोडागु जिले। कुछ अनुमान बताते हैं कि इसकी फसल 500 एकड़ से भी कम की जमीन पर की जाती है। हालांकि, केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक में रामबूटन उत्पादन को बढ़ाने की अच्छी संभावनाएं हैं।
10. स्ट्रॉबेरी

स्ट्रॉबेरी की खेती महाबलेश्वर, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, नैनीताल, उत्तराखंड, कश्मीर और ऊटी में की जाती है। स्ट्रॉबेरी को उगने के लिए ठंडी जलवायु की जरूरत होती है। हालांकि कुछ स्ट्रॉबेरी किस्मों को उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में भी उगाया जा सकता है। सितंबर-अक्टूबर के दौरान खुले खेतों में इनकी खेती की जाती थी और मई-जून में कटाई की जाती थी। हालांकि पूरे साल रहने वाली इनकी अधिक डिमांड के चलते सीजन न होने के दौरान ग्रीनहाउस में इनकी खेती नहीं की जाती है। इससे स्ट्रॉबेरी को अपनी ऊंची कीमत भी मिलती है।
स्ट्रॉबेरी की मांग बहुत ज्यादा है लेकिन इन्हें उगाना भी उतना ही खर्चीला है। इसके पौधे को इटली और अमेरिका से निर्यात करना पड़ता है और हर साल इन्हें दोबारा लगाए जाने की जरूरत होती है। बेमौसम मानसून और सर्दियों की बारिश ने महाबलेश्वर में स्ट्रॉबेरी की खेती को प्रभावित किया है। इससे इस स्ट्रॉबेरी की लगभग 3000 एकड़ जमीन पर प्रभाव पड़ा है। ऐसी परेशानियों के चलते ही इस क्षेत्रों के किसानों के लिए ब्लूबेरी और रास्पबेरी जैसी बेरी धीरे-धीरे ज्यादा आकर्षक होती जा रही है। उदहारण के लिए ब्लूबेरी को केवल एक बार लगने के बाद सालों तक इससे फल प्राप्त किए जा सकते हैं। इतना ही नहीं ब्लूबेरी मार्केट में 1000 रूपए प्रति किलो तक बेची जाती है। वहीं दूसरी ओर स्ट्रॉबेरी केवल 70-80 रूपए प्रति किलो तक ही बेचीं जाती है।
विदेशी फल आमतौर पर महंगे होते हैं क्योंकि उनकी पैकेजिंग, परिवहन, भंडारण, प्रसंस्करण आदि पर काफी पैसे खर्च होते हैं। हालांकि इनकी मांग लगातार बढ़ रही है और भारतीय किसान इसका लाभ उठाकर काफी खुश भी हैं। यह सब भारतीय समाज के पश्चिमीकरण और बदलती डाईट और जीवन शैली के कारण हुआ है। इसलिए आने वाले समय में आप इन विदेशी फलों को सेब, संतरे, और स्ट्रॉबेरी (मूल विदेशी फल) की तरह एक आम फल के रूप में देख सकते हैं।
हमें उम्मीद है कि आपको यह ब्लॉग अच्छा लगा होगा। अपनी राय नीचे कमेंट बॉक्स में साझा करें। इससे भी बेहतर, हमें बताएं कि ऊपर बताए गए दस में से कौन सा विदेशी फल आपको सबसे ज्यादा पसंद है। भारतीय कृषि व्यापार पर साप्ताहिक ब्लॉग के लिए बीजक ब्लॉग को लाइक, शेयर और फॉलो करना न भूलें। बीजक भारत का सबसे भरोसेमंद एग्री-ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म है। यह भारत भर के कृषि व्यापारियों को विदेशी फलों सहित 200 से अधिक उत्पादों में व्यापार करने के लिए एक साथ लाता है! हाल ही में बीजक ने और भी ज्यादा किसानों को देश भर में व्यापार करने का विकल्प देने के लिए eNAM के साथ एकीकृत किया है। बीजक मंडी पर व्यापार की एक झलक देखें और ऐप डाउनलोड करके तुरंत ट्रेडिंग शुरू करें।
स्त्रोत: PIB, PIB PDF, FAO.org, Researchgate, MapsofIndia, ब्लूबेरी: Tribune India, Gardening Tips, रामबूटन: Research Gate, iihr.res.in, ड्रैगनफ्रूट: Punekarnews, Deccan Herald, Economic Times, Downtoearth.org, एवोकाडो: Krishijagran, India Times, Fao.org, स्ट्रॉबेरी: Agriculture Guruji, TOI, अंजीर: TOI, Researchgate, Financial Express, Wlimg, कीवी: cihner.gov.in, Researchgate, Mygov.in, कृष्णकमल फल: Business Kashmir, मैंगोस्टीन: icar.org.in, Civil Society Online