स्वतंत्रता के बाद से भारतीय कृषि क्षेत्र का विकास

स्वतंत्रता के बाद से भारतीय कृषि क्षेत्र का विकास स्वतंत्रता के बाद से भारतीय कृषि क्षेत्र का विकास

भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए कृषि हमेशा से ही एक महत्वपूर्ण क्षेत्र रहा है। आज के समय की बात करें तो कृषि क्षेत्र अकेले ही भारत की 60% से ज्यादा आबादी को रोजगार प्रदान करता है। वहीं 70% से अधिक ग्रामीण परिवार कृषि पर निर्भर करते हैं। बात करें स्वतंत्रता से पहले की तो उस समय भारत की 95% अर्थव्यवस्था कृषि और इससे मिलने वाले राजस्व पर निर्भर करती थी। भले ही कृषि उस समय अधिकाँश आबादी की आय का प्राथमिक स्रोत था लेकिन ब्रिटिश शासन के अंतर्गत इसे गिरावट का सामना करना पड़ा। यह कहना बिलकुल सही रहेगा कि ब्रिटिश शासन के समय न तो भारतीय फसल पर अच्छा मुनाफा कमा पाए और न ही किसानी करते हुए एक अच्छा जीवन जी पाए। आजादी मिलने के बाद भारत ने देश में कृषि की सूरत को लगातार बदला और खुद को एक खाद्य-कमी राष्ट्र से एक खाद्य-अधिशेष राष्ट्र में बदला।

टेक्नोलॉजी और नए आविष्कारों ने भारत की कृषि को कई गुणा तक बढ़ाया है। 1950-51 की 135 मिलियन टन उपज आज 2021-22 में 1300 मिलियन टन तक पहुँच चुकी है। इतने सालों में खाद्यान्न के उत्पादन में 6 गुना, बागवानी फसलों में 11 गुना, अंडे में 53 गुना और दूध में 10 गुना वृद्धि हुई है। इस लगातार बढ़ते उत्पादन ने भारत की राष्ट्रीय खाद्य और पोषण सुरक्षा पर बहुत प्रभाव डाला। आज हम दुनिया भर में दूध, दाल और जूट के सबसे बड़े उत्पादक हैं। वहीं चावल, गेहूं, कपास, फलों और सब्जियों के मामले में हम दुनिया में दूसरे सबसे बड़े उत्पादक हैं। इतना ही नहीं मसाले, मुर्गी पालन, मछली, पशुधन और वृक्षारोपण फसलों के उत्पादन में भी हम सबसे आगे हैं।

इस ब्लॉग में हम जानेंगे कि स्वतंत्रता के बाद से भारतीय कृषि किस तरह से बढ़ी है। हम एक झलक देखेंगे कि कैसे अंग्रेजी हुकूमत से आजाद होने से पहले हम कृषि किया करते थे, कैसे भारत में तरह-तरह की कृषि क्रांतियों ने जन्म लिया और बहुत कुछ।

भारत ने खुद को कैसे एक खाद्य-कमी से एक खाद्य अधिशेष राष्ट्र में बदला
भारत ने खुद को कैसे एक खाद्य-कमी से एक खाद्य अधिशेष राष्ट्र में बदला

स्वतंत्रता से पहले की कृषि की एक झलक

प्राचीन साहित्यों में देखें तो यह पाएंगे कि भारतीय कृषि की शुरुआत आज से करीब 11,000 साल पहले हो चुकी थी। उस समय कृषि की शुरुआत जानवरों को पालतू बनाकर और पौधे उगाकर की गई थी। भारतीय ग्रंथों जैसे श्रीमद भगवद गीता, ऋग्वेद और अथर्व वेद में भी कृषि का उल्लेख किया गया है। प्राचीन भारत में, किसान फसल की जुताई, बुवाई और कटाई के लिए शुभ दिनों का इंतजार करते थे क्योंकि उनका मानना था कि कृषि धार्मिक रीति-रिवाजों से जुड़ी हुई है।

एक मायने में देखा जाए तो अंग्रेजों ने भारतीय कृषि क्षेत्र का व्यावसायीकरण किया। यह औद्योगिक क्रांति का एक रूप था लेकिन इसने भारतीय कच्चे माल और खाद्यान्न में कमी ला दी। इतना ही नहीं भारतीयों को उस समय ब्रिटेन में बनी वस्तुओं का आयता करना पड़ता था। अंग्रेजों ने कपास, जूट, चाय, तंबाकू, नील जैसी नकदी फसलों को उगाने पर इतना जोर दिया था कि दूसरी फसलें उगाई जानी बंद हो गयी। यही चीज आगे चलकर अकाल का कारण बनीं। आज जिस भारतीय कृषि व्यापार को हम जानते हैं उसकी शुरुआत इसी समय के दौरान हुई थी। हालांकि, शुरुआत में यह काफी असंगठित, असमान था और इसमें बहुत ज्यादा कमाई नहीं थी। इसका भारतीय कृषि समाज की आत्मनिर्भरता पर भी काफी असर पड़ा।

20वीं सदी के शुरुआती समय में (1901 से 1947) के दौरान भारतीय कृषि जलवायु पर बहुत ज्यादा निर्भर करती थी। मानसून की सही उपलब्धता न होने के कारण, मुख्य रूप से दक्षिण-पश्चिम मानसून के कारण सूखा और खराब फसल जैसी परिस्थितियाँ सामने आई। कई सालों तक लगातार चले इस सूखे ने देश में अकाल खड़ा कर दिया था। सिर्फ जलवायु ही नहीं कृषि क्षेत्र के सामने जनसँख्या का दबाव, कम उत्पादन और संस्थागत मुश्किलों जैसी चुनौतियाँ भी हैं। यही कारण है कि ब्रिटिश राज के समय भारतीय कृषि एक हद तक ठहर चुकी थी।

स्वतंत्रता के बाद- भारतीय कृषि के पहले 50 वर्ष

स्वतंत्रता के समय भारतीय कृषि एक तौर पर ठहर चुकी थी। इसी कारण स्वतंत्रता के तुरंत बाद भारतीय सरकार ने कृषि को दोबारा सुचारू रूप से चलाने की पहल शुरू की। सरकार द्वारा बनाई गई शुरूआती तीन से पांच साल की योजनाओं का प्रथम लक्ष्य था कृषि को बढ़ना। इसके लिए उन्होंने कुछ संस्थागत बदलाव भी किए जैसे कृषि से ज़मींदार और जागीरदार जैसे बिचौलियों को हटाना।

साठ के दशक के मध्य में कृषि में अनाज की अधिक उपज देने वाली किस्मों को पेश किया गया। साथ ही कृषि में सार्वजनिक निवेश की शुरुआत की गई जिसे मुख्यता सिंचाई के लिए शुरू किया गया। सार्वजनिक क्षेत्र के बलबूते ही भारतीय कृषि में कृषि अनुसंधान और शिक्षा को बढ़ावा मिल पाया। उसी समय के दौरान कृषि क्षेत्र में बहुत बड़े निवेश किए गए। इसके चलते ही भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) और राज्य कृषि विश्वविद्यालयों (एसएयू) को बनाया जा सका। इतना ही नहीं किसानों को इंसेंटिव देने के लिए एक बड़ा नेटवर्क भी तैयार किया गया।

अगेल कुछ साल कृषि के बुनियादी ढांचे में सुधार, उर्वरकों के अधिक उपयोग, बीजों और मशीनरी की किस्मों में सुधार और ऋण की सप्लाई के लिए इस्तेमाल पर लगाए गए। नए और आधुनिक आदानों का इस्तेमाल भी बढ़ाया गया जिसके चलते उस समय फसलों का अधिक उत्पादन हुआ। इन सब चीजों के चलते ही भारत स्वतंत्रता के बाद करीब 2.7% प्रति वर्ष के हिसाब से कृषि में बढ़ोतरी करता गया। इस सदी के शुरूआती समय में कृषि सिर्फ 0.3% के रफ़्तार से बढ़ रही थी। इतना ही नहीं इस समय के दौरान व्यावसायिक फसलें जैसे गन्ना, तिलहन आधी के उत्पादन में भी भारी बढ़ोतरी देखी गई।

1950-51 और 2021-22 के बीच में में कृषि उत्पादों का उत्पादन
1950-51 और 2021-22 के बीच में में कृषि उत्पादों का उत्पादन

कृषि में आई तरह-तरह की क्रांतियाँ

1960 के दशक के मध्य में भारत ने हरित क्रांति को देखा। यह भारतीय कृषि के इतिहास में एक बहुत ही महत्वपूर्ण क्रांति थी। हरित क्रांति के चलते हेमें खाद्यान्न के उत्पादन को बढ़ाने में काफी मदद मिली। इसके कारण ही भारतीय कृषि क्षेत्र में अच्छी उपज वाली अलग-अलग किस्मों को लाया गया। इतना ही नहीं इसके चलते ही कृषि में उर्वरकों का इस्तेमाल भी बढ़ा और कृषि समुदाय की आय और रोजगार और भी ज्यादा बढ़ा। बाद के दशकों में देश में लाल क्रांति, पीली क्रांति, स्वर्ण क्रांति, गुलाबी क्रांति आदि देखी गईं, जिससे राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा और भी बेहतर हो गई।

भारतीय कृषि में आई विभिन्न प्रकार की क्रांतियाँ
भारतीय कृषि में आई विभिन्न प्रकार की क्रांतियाँ

स्वतंत्रता के बाद – 2000 के दशक की शुरुआत!

पिछले दो दशक भारतीय कृषि के लिए बेहद बेमिसाल रहे हैं। इन सालों में कृषि क्षेत्र में नई नीतियां और सुधार, डिजिटल तकनीकों को इस्तेमाल और कृषि क्षेत्र में निवेश काफी हद तक बढ़ा है। सिर्फ यही नहीं संस्थागत ऋण भी काफी बढ़ा है। राष्ट्रीय बागवानी मिशन (एनएचएम) और ब्रिंगिंग ग्रीन रिवोल्यूशन इन ईस्टर्न इंडिया (बीआरईआई) जैसी बेहतरीन स्कीम कृषि में पेश की गई ताकि रिकॉर्ड उत्पादन हासिल किया जा सकें। इतना ही नहीं केंद्र प्रायोजित योजना, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एनएफएसएम) भी अपनी भारी सफलता के साथ कामयाब रहा। इस योजना के चलते चावल, गेहूं और दालों के अतिरिक्त उत्पादन को पूरा किया जा सका।

साल 2014-15 की बात करें तो इसमें राष्ट्रीय फसल बीमा कार्यक्रम (NCIP) और मौसम आधारित फसल बीमा योजना (WBCIS) शुरू की गई थी। एनसीआईपी का काम था खाद्य सुरक्षा और फसल विविधीकरण को बनाए रखना। वहीं दूसरी ओर डब्ल्यूबीसीआईएस ने मौसम की सही जानकारी दे कर किसानों की फसल खराब होने से बचाई जिसके कारण उनपर वित्तीय भार नहीं पड़ा। 2016 में कृषि उत्पादों के लिए एक राष्ट्रीय बाजार बनाने के लिए eNAM नामक एक पैन-इंडिया इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म बनाया। यह प्लेटफॉर्म कई चीजों में मदद करता है जैसे एकीकृत बाजारों, रियल-टाइम रेट की जानकारी और खरीदारों और सप्लायर के बीच की जानकारी के अंतर को कम करना। बीजक और eNAM के एकीकरण के बारे में पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।

ई-नाम के साथ-साथ कई और डिजिटल प्लेटफॉर्म पेश किए गए हैं जैसे ई-सागु (किसानों को उत्पादकता बढ़ाने के लिए विशेषज्ञ जानकारी देता है), सामुदायिक रेडियो (मौसम, खेती आदि पर नवीनतम जानकारी देता है) और डिजिटल ग्रीन (ऑनलाइन वीडियो का उपयोग करके कृषि जानकारी देता है)।

साल 2017 वो साल था जब इंदौर के कृषि उपज मंडी समिति (एपीएमसी) के किसानों ने कैशलेस पेमेंट को अपनाया। उन्होंने पेमेंट के लिए RTGS और चेक जैसी सुविधाओं का इस्तेमाल करना शुरू किया। साल 2018 में बेहतर रेट और निर्यात के उद्देश्य से किए जाने वाले उत्पादन को बेहतर बनाने के लिए कृषि निर्यात नीति तैयार की गई थी। इस नीती के चले संसाधित और जैविक खाद्य पदार्थों के निर्यात पर लगे सभी प्रतिबंध हटा दिए गए ताकि सरकार किसान की आय को दोगुना करने की ओर एक कदम और बढ़ जाए। 2020 में कृषि नीति में कुछ बदलाव किए गए और किसानों को निवेश के रूप में वित्तीय सहायता दी गई। ऐसा इसलिए किया गया ताकि कोविड-19 के चलते किसानों को हुए नुक्सान को कम किया जा सके।

इसके अलावा कुछ साल पहले कई एग्री-ट्रेडिंग डिजिटल ऐप सामने आई। इन ऐप ने कृषि मूल्य श्रृंखलाओं को डिजिटल करने और व्यापारियों के बिजनेस को बढ़ाने के लिए उन्हें सभी जरूरी चीजें दी। इनमें से एक एग्री-ट्रेडिंग ऐप बीजक भी है जो भारत में सबसे भरोसेमंद एग्री-ट्रेडिंग ऐप है। यह एग्री-ट्रेडिंग के लिए एक वन-स्टॉप ई-मार्केटप्लेस के रूप में काम करती है जिसपर सप्लायर, मंडी आढती और अन्य संस्थागत खरीदार एक साथ काम करते हैं। बीजक पर देशभर में व्यापार किया जा सकता है और यह ट्रेडिंग परेशानियों को भी हल करती है जैसे खरीदार या सप्लायर ढूँढना, समय पर पेमेंट मिलना, व्यापार का विस्तार आदि।

2020-21 के केंद्रीय बजट में कृषि को अर्थव्यवस्था के प्रमुख चालकों में से एक माना गया है। इस बजट में कृषि उड़ान योजना की घोषणा की गई। इस योजना के अंतर्गत कृषि उत्पादों को हवाई मार्ग के रास्ते लाने और ले जाने के लिए प्रणाली और बेहतर बनाई जाएगी। ब्लॉक लेवल पर गोदाम बनाने के लिए फंडिंग का भी वादा सरकार की ओर से किया गया था। इसके अलावा 20 लाख किसानों को स्टैंड-अलोन सोलर पंप देने के लिए प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा और उत्थान महाभियान योजना का विस्तार किया गया।

आखिर में हम यह कहना चाहेंगे कि रास्ते में आने वाली कई चुनौतियों के बावजूद भी कृषि ने कभी बढ़ना बंद नहीं किया। भारतीय स्वतंत्रता के 75 सालों के दौरान कृषि ने बेहतरीन वृद्धि दिखाई है और आगे भी यह इसी तरह चलती रहेगी। यह बात कई बार प्रमाणित हो चुकी है कि जब सभी क्षेत्र ठप पड़ जाते हैं तो कृषि ही अकेला भारत का तारणहार बनता है। कोविड-19 इसका सबसे बड़ा उदहारण है।

हमें उम्मीद है कि यह ब्लॉग आपको स्वतंत्रता के बाद से भारतीय कृषि में किस तरह से विकास हुआ उस की सही जानकारी देगा। साथ ही इस विषय से जुड़े आपके सभी सवालों का जवाब भी आपको इसमें मिलेगा। हम यह भी आशा करते हैं कि आपको यह ब्लॉग पढ़कर अच्छा लगा होगा। नीचे कमेंट बॉक्स में हमें बताएं कि आपको ब्लॉग में कौन सी जानकारी सबसे अच्छी लगी। साथ ही, भविष्य में इस तरह के और ब्लॉग के लिए हमारे साथ बने रहें। नियमित साप्ताहिक अपडेट के लिए बीजक ब्लॉग को लाइक, शेयर और फॉलो करें। बीजक भारत का सबसे भरोसेमंद एग्री-ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म है जो 150 से अधिक उत्पादों में व्यापार करने के लिए किसानों, खरीदारों (कमीशन एजेंटों) और सप्लायर को एक साथ लाता है। आप बीजक ऐप को Google Playstore और Apple App Store से डाउनलोड कर सकते हैं।

स्त्रोत: ICAR, Niti.gov.in, FAO, Your Article Library, Down to earth, Agriculture Revolution, Key Policies and Reforms, prsindia.org, Map Of India,Openedition.org, History Of Agriculture