चाहे महाराष्ट्र का वडापाव हो या बंगाल के आलू पोस्तो, दिल्ली की चाट और पराठे हो या दक्षिण भारत में डोसा के साथ परोसे जानेवाली आलू की सब्जी। भारत की चारों दिशाओं की खाद्य संस्कृतियों में हमें आलू का प्रभाव दिखाई देता हैं। आलू एक ऐसा मंडी उत्पाद है, जिसे काफी दिनों तक स्टोर करके रखा जा सकता है और जिसकी सहायता से कई व्यंजन बनाए जा सकते हैं। इसलिए भारत की आज़ादपुर मंडी, नीमच मंडी, कानपुर मंडी और नासिक मंडी जैसी सभी प्रमुख मंडियों में आलू सबसे अधिक व्यापार होने वाले उत्पादों में से एक है। मंडी व्यापार में आलू की अलग-अलग किस्मों का विशेष महत्व है, तो आइए इस ब्लॉग के माध्यम से जानते है कि आलू के मंडी भाव और व्यापार के लिए कौन-कौन सी किस्में ज़्यादा पसंद की जाती हैं।
भारतीय मंडियों में आलू की किस्में (Potato Varieties in Indian Mandis)
- कुफरी ज्योति (Kufri Jyoti): आलू के इस किस्म की फसल 80 से 150 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है। इसकी गिनती आलू की बेहतरीन किस्मों में की जाती है। इससे प्रति हेक्टेयर 150 से 250 क्विंटल पैदावार मिल सकती है। कुफरी ज्योति की खरीदारी और बिक्री ज़्यादातर बंगाल, बिहार और झारखंड की मंडियों में की जाती है।
- कुफरी सिंदूरी (Kufri Sinduri): यह आलू की उन्नत किस्म है, जो पाले को भी सहन कर सकती है। पहाड़ी इलाके के मुकाबले इसकी फसल मैदानी इलाके में जल्दी तैयार हो जाती है। आलू की यह किस्म 120 से 125 दिनों में तैयार हो जाती है, जो प्रति हेक्टेयर 300 से 400 क्विंटल पैदावार देने की क्षमता रखती है। कुफरी सिंदूरी आलू का पूर्वांचल यानी उत्तर में नेपाल, बिहार, मध्य प्रदेश के बघेलखंड क्षेत्र और पश्चिम में उत्तर प्रदेश के अवध क्षेत्र की मंडियों में ज़्यादा व्यापार होता है।
- कुफरी बहार 3797 (Kufri Bahar): यह किस्म मंडी व्यापार की भाषा में 3797 के नाम से भी जानी जाती है। उत्तरी भारत के मैदानी इलाकों के लिए यह एक अच्छी किस्म है। यह 90 से 110 दिन में तैयार होती है। इसकी पैदावार प्रति हेक्टेयर करीब 200-250 क्विंटल है। राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटक और केरल में कुफरी बहार का ज़्यादातर व्यापार किया जाता है।
- कुफरी नीलकंठ (Kufri Neelkanth): पिछले 2 सालों में उभरकर आनेवाली पसंदीदा आलू की किस्मों में है कुफरी नीलकंठ। एंटीऑक्सिडेंट से भरपूर यह बेहतरीन किस्म का आलू है, जो ज़्यादा ठंड के मौसम को भी बर्दाश्त कर सकता है। इसकी उत्पादन क्षमता अन्य किस्मों से अधिक होती है, जो 90 से 100 दिनों में फसल तैयार होती है। प्रति हेक्टेयर इसकी उत्पादन क्षमता 350-400 क्विंटल है।
- कुफरी अलंकार (Kufri Alankar): यह आलू की ऐसी किस्म है जो 70 दिनों में तैयार हो जाती है। अंगमारी रोग के लिए कुछ हद तक प्रतिरोधी होती है। प्रति हेक्टेयर 200 से 250 क्विंटल तक उपज देती है। छत्तीसगढ़, राजस्थान की मंडियों में कुफरी अलंकार इस आलू की किस्म का अधिक मंडी व्यापार होता है।
- कुफरी चिप्सोना (Kufri Chipsona): चिप्स के लिए कुफरी चिप्सोना-1, कुफरी चिप्सोना-2 और कुफरी चिप्सोना-3 नामक किस्मों को विकसित किया है। आलू की खुदाई करके जो आलू मिलता है उसमे 68.5 प्रतिशत घरेलू खपत में चला जाता है। जो विकसित देश है वहां पर आलू की घरेलू उपयोगिता मात्र 31 प्रतिशत है। बचे हुए आलू को चिप्स और बेवरेजेस में इस्तेमाल किया जाता है। खासकर चिप्स में तो कुल आलू उत्पादन का 12 प्रतिशत होता है। दिल्ली एनसीआर और उत्तराखंड के गांव क्षेत्र में कुफरी चिप्सोना किस्म की ज़्यादा पैदावार होती है। कुफरी चिप्सोना-4 आलू की खेती कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश और गुजरात में होती है। उत्पादन प्रति हेक्टयेर 300-350 क्विंटल होता है।
- LR आलू (Lady Rosetta): इस आलू की किस्म लेडी रोसेटा के नाम से जानी जाती है। यह आलू 80-100 दिनों में तैयार हो जाता है। प्रति हेक्टेयर इसकी पैदावार 250 से 300 क्विंटल है। पंजाब और गुजरात के चिप्स प्रोसेसिंग यूनिट्स में यह आलू प्रोसेसिंग के लिए भेजा जाता है।
- डायमंड आलू (Diamond Potato): इस किस्म के आलू की पैदावार उत्तराखंड, हरियाणा और पंजाब में होती है। डायमंड आलू भी चिप्सोना और एल आर आलू की तरह चिप्स के लिए प्रोसेसिंग यूनिट में भेजें जाते हैं।
- कुफरी कंचन (Kufri Kanchan): कुफरी कंचन इस किस्म की बुवाई उत्तर-बंगाल की पहाड़ियों और सिक्किम में अधिक होती है। इससे प्रति हेक्टेयर 250 से 300 क्विंटल उपज मिल जाती है। किसानों और मंडी व्यापारियों की पसंदीदा किस्में जैसे न्यू हॉलैंड, कुफरी कंचन और सिंदूरी का बिहार और झारखंड में ज़्यादातर मंडी व्यापार होता है।
- 302 आलू: आगरा के आलू व्यापारियों की पहली पसंद हैं 302 आलू। आम आलू की किस्मों के मुकाबलें इस आलू की डेढ़ गुना ज़्यादा पैदावार होती है। इसलिए आलू के मंडी व्यापारी इस किस्म के आलू को खरीदने के लिए दूर-दूर से मंडियों में आते हैं। यह आलू 80-90 दिनों में तैयार हो जाता है। प्रति हेक्टेयर इसकी पैदावार 400-450 क्विंटल है।
- कुफरी चंद्रमुखी (Kufri Chandramukhi): इस किस्म में फसल 90 से 120 दिनों में तैयार हो जाती है। इस आलू के पौधे का तना लाल-भूरे रंग के धब्बे के साथ हरा होता है। इससे प्रति हेक्टेयर 200 से 250 क्विंटल पैदावार प्राप्त हो जाती है।
- कुफरी मोहन (Kufri Mohan): आलू की यह किस्म 80-90 दिनों में तैयार हो जाती है। जिससे 350-400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार होती है। इस किस्म की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इस किस्म पर पाले का प्रभाव नही पड़ता है।
- E 4486: यह किस्म 135 दिन में फसल को तैयार करती है। इससे प्रति हेक्टेयर 250 से 300 क्विंटल पैदावार मिल सकती है। इसको यूपी, हरियाणा, बिहार, पश्चिम बंगाल, गुजरात और मध्य प्रदेश के लिए अधिक उपयोगी माना जाता है ।

भारतीय मंडियों में आलू की किस्में
यह कुछ ऐसी किस्में हैं जो जिस क्षेत्र में उगाई जाती है वहाँ के ही क्षेत्रीय मंडी व्यापार के लिए उपयुक्त होती है।
- कुफरी देवा (Kufri Dewa): इस किस्म की बुवाई से फसल 120 से 125 दिनों में तैयार हो जाती है, जो कि प्रति हेक्टेयर 300 से 400 क्विंटल पैदावार देने में सक्षम है। यह किस्म की उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र और मध्यवर्ती मैदानों में अच्छी खेती होती है।
- कुफरी नवताल जी 2524 (Kufri Navtal): आलू की यह किस्म 75 से 85 दिनों में तैयार होती है, जिससे प्रति हेक्टेयर 200 से 250 क्विंटल पैदावार मिलती है।
- कुफरी लालिमा (Kufri Lalima): यह भी कम समय में अधिक पैदावार देने वाली आलू की एक उन्नत किस्म है, जो 90 से 100 दिन में ही तैयार हो जाती है। प्रति हेक्टेयर इसकी पैदावार 200-250 क्विंटल होती है।
- कुफरी स्वर्ण (Kufri Swarna): दक्षिण भारत के पहाड़ी इलाके इस किस्म के आलू के उत्पादन के लिए अच्छे है। इसकी फसल करीब 110 दिनों में तैयार हो जाती है और प्रति हेक्टेयर 300 क्विंटल पैदावार होती है। आलू की यह किस्म अन्य के मुकाबले जल्दी खराब हो जाती है।
- कुफरी शील मान (Kufri Shil Maan): यह किस्म 100 से 130 दिनों में फसल तैयार करती है, जिससे प्रति हेक्टेयर 250 क्विंटल तक पैदावार मिल सकती है।
- कुफरी जवाहर जेएच 222 (Kufri Jawahar JH 222): आलू के इस किस्म की फसल को तैयार होने में 90 से 110 दिन लगते हैं। यह किस्म अगेता झुलसा और फोम रोग के लिए प्रतिरोधी होती है। इससे प्रति हेक्टेयर 250 से 300 क्विंटल पैदावार प्राप्त हो सकती है ।
- कुफरी गंगा (Kufri Ganga): आलू की यह किस्म कम समय में अधिक पैदावार देती है। इसकी फसल 75 से 80 दिनों में तैयार हो जाती है। प्रति हेक्टेयर इसकी पैदावार 250 से 300 क्विंटल है।
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