भारत में प्राकृतिक खेती

भारत में प्राकृतिक खेती भारत में प्राकृतिक खेती

भारतीय सरकार ने साल 2022-23 के केंद्रीय बजट में कृषि क्षेत्र पर काफी ध्यान दिया है। अपनी घोषणा में सरकार ने कहा कि आने वाले महीनों में वह रासायन मुक्त प्राकृतिक खेती (Natural Farming) पर ध्यान देंगे। इसकी शुरुआत गंगा किनारे स्थित 5 किलोमीटर कॉरिडोर पर होगी।

भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति (BPKP) के अंतर्गत आने वाले परम्परागत कृषि विकास योजना (PKVY) भारत में पारंपरिक स्वदेशी प्राकृतिक कृषि प्रथाओं को बढ़ावा देती है। 2019-20 से 2024-25 तक की इस स्कीम के लिए 4645.69 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। इस समय के दौरान सरकार का लक्ष्य है 4.09 लाख हेक्टेयर में इन कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देना। यह स्कीम वित्तीय सहायता और किसानों को नई चीजें सिखाने जैसी बहुत सी चीजें प्रदान करती हैं। अब तक आठ राज्यों जैसे (आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, केरल, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, ओडिशा, तमिलनाडु और झारखंड) ने इस स्कीम को चुना है।

सवाल यह है कि प्राकृतिक खेती (Natural Farming) को अचानक से किस बात ने सुर्खियों में ला दिया है? यह जानने के लिए हमें सबसे पहले यह समझना होगा कि प्राकृतिक खेती क्या है और हम इसके बारे में क्यों बात कर रहे हैं।

प्राकृतिक खेती का जन्म

Indian farmer ploughing his fields
भारतीय किसान अपने खेतों की जुताई करते हुए

प्राकृतिक खेती को जीरो-बजट प्राकृतिक खेती (Zero Budget Natural Farming) के रूप में भी जाना जाता है। यह बिना किसी निर्मित इनपुट या उपकरण के की जाती है। हालांकि यह उस वातावरण में रहने वाले जीवों पर निर्भर करती है। अध्ययनों से पता चला है कि यह पर्याप्त मात्रा में भोजन प्रदान करने के साथ-साथ जल प्रदूषण, जैव विविधता को होने वाले नुकसान और मिट्टी के कटाव को भी रोकती है।

आज जिस प्राकृतिक खेती के मॉडल को हम जानते हैं उसे 1990 के दशक के मध्य में महाराष्ट्र के बेलोरा गांव के एक कृषिविद् सुभाष पालेकर ने विकसित किया था। उन्होंने इसे हरित क्रांति द्वारा शुरू की गई विधियों जैसे उर्वरकों और कीटनाशकों के ज्यादा उपयोग के विकल्प के रूप में बनाया था। उन्होंने देखा कि इन तरीकों से शुरुआत में काफी अच्छा उत्पादन होता है लेकिन समय के साथ यही उत्पादन कम होता जाता है। उन्होंने जंगलों को देखा और जाना कि वह अपने मजबूत इकोसिस्टम से बिना किसी देख रेख के भी चीजें उगाते हैं। 1989 से 1995 तक सुभाष ने प्राकृतिक खेती के तरीकों पर अध्ययन किया और ‘जीरों बजट प्राकृतिक खेती’ (Zero Budget Natural Farming) के तरीकों को विकसित किया। ZBNF में सिंथेटिक रासायनिक इनपुट की जगह फार्म पर रीसायकल किए गए इनपुट जैसे गाय का गोबर – मूत्र का मिश्रण और आवधिक मृदा वातन का उपयोग करते हैं। समय के साथ यह कम होता जाएगा और आखिर में खेती के लिए इनपुट खरीदने की निर्भरता को कम कर देगा। यह उन छोटे किसानों के लिए अच्छा है जो अपने मुनाफे का एक बड़ा हिस्सा खेती के इनपुट खरीदने में खर्च करते हैं।

सुभाष पालेकर को कृषि के प्रति किए गए उनके कार्यों के लिए 2016 में “पद्मश्री” से सम्मानित किया गया था। उन्हें आंध्र प्रदेश के शून्य बजट खेती सलाहकार के रूप में नियुक्त किया गया था। आज ZBNF को आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश और केरल में बड़े तौर पर अपनाया जा रहा है। परिणाम बताते हैं कि ZBNF न सिर्फ किसानों के बजट के अनुकूल होती है बल्कि यह मिट्टी के स्वास्थ्य, भूजल की गुणवत्ता और स्तरों और कृषि इकोसिस्टम में सुधार भी करती है। लंबे समय में यह अधिक रोजगार के अवसर और ग्रामीण विकास प्रदान कर सकती है।

भारत में प्राकृतिक खेती का महत्व

अनुमान है कि 2050 तक भारत की आबादी 10 अरब हो जाएगी। इसलिए खाद्य उत्पादन को और बढ़ाने की तत्काल जरूरत है। इसलिए आज न सिर्फ फसल की पैदावार बढ़ाने पर बल्कि इस प्रक्रिया के दौरान पर्यावरण पर भी ध्यान दिया जा रहा है। जलवायु परिवर्तन के चलते ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन काफी कम हुआ है। इतना ही नहीं इसने किसानों को प्रेरित किया कि वह कृषि योग्य जमीन के लिए जंगल की कटाई न करें। उपभोक्ता इस बारे में काफी कुछ जानते हैं कि आखिर वह क्या खा रहे हैं। कृषि इनपुट से लेकर किसान कल्याण तक की बातें आज कल एक मुद्दा बन चुका है। आज कल ऐसे टिकाऊ कृषि समाधान प्रदान करने पर जोर दिया जा रहा है जिससे किसान, उपभोक्ता आदि सभी लोगों को एक बेहतर अनुभव मिल सकें। यही वजह है कि प्राकृतिक, टिकाऊ, जैविक खेती आदि काफी प्रसिद्ध हो रही हैं।

Fresh vegetables produced via natural farming
प्राकृतिक खेती से उत्पादित ताजी सब्जियां

भारत में प्राकृतिक खेती (Natural Farming In India)

नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद के मुताबिक, भारत रासायनिक मुक्त खेती की जमीन को अभी 15% तक बढ़ा सकता है। इतना ही नहीं 2030 तक इस आंकड़े को 30% तक बढ़ाया जा सकता है। उन्होंने कहा है कि इससे राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा को नुकसान नहीं होगा हालांकि उत्पादन और निर्यात में जो कमी आएगी उसे उर्वरक सब्सिडी में कमी ला कर ठीक किया जा सकता है। हालांकि, उन्होंने ये भी कहा कि प्राकृतिक खेती तभी अपनाए जब आप इसे लंबे समय के लिए करना चाहते हो।

राष्ट्रीय कृषि विस्तार प्रबंधन संस्थान (MANAGE) द्वारा आयोजित पांच दिन के ऑनलाइन मास्टर ट्रेनर्स ट्रेनिंग कार्यक्रम के उद्घाटन भाषण में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि 30,000 ग्राम प्रधानों को 750 जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से प्राकृतिक कृषि पद्धतियों की ट्रेनिंग दी जाएगी। इन कार्यकर्मों का लक्ष्य है कि वह 15 अगस्त 2022 से पहले सभी जिलों और राज्यों में ट्रेनिंग पूरी करें। उन्होंने कहा कि भारत की खाद्य सुरक्षा अभी अच्छी स्थिति में है। इसलिए भारत जैविक और प्राकृतिक खेती के माध्यम से उच्च गुणवत्ता, सुरक्षित, टिकाऊ कृषि उत्पादों पर ज्यादा ध्यान दे सकता है। लंबे समय में यह मिट्टी के स्वास्थ्य को बढ़ाएगा, किसान के लिए उर्वरक, कीटनाशक, सिंचाई लागत में कटौती करेगा और अच्छा मुनाफा भी लाएगा।

श्री तोमर ने एफपीओ से प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए उसमें अधिक शामिल होने का आग्रह किया। उन्होंने इस कार्यक्रम के लिए MANAGE द्वारा निभाई गई भूमिका की भी सराहना की। MANAGE प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए नोडल एजेंसी के रूप में काम करेगा। MANAGE अभी एक मास्टर ट्रेनर कार्यक्रम आयोजित करके प्राकृतिक कृषि विशेषज्ञों का एक पूल तैयार कर रहा है। ये कार्यक्रम अलग-अलग राज्य कृषि विश्वविद्यालयों, SAMETI, ATARI, KVK, ATMA और ICAR संगठनों के अधिकारियों के लिए हैं। ट्रेनिंग कार्यक्रमों का उद्देश्य सिविल सोसाइटी और निजी क्षेत्र के संगठनों के अनुभवी पेशेवरों और किसानों को लाना भी है।

प्राकृतिक खेती के लाभ (Benefits of Natural Farming)

  • बेहतर पैदावार 

    प्राकृतिक खेती उपलब्ध श्रम, मिट्टी और उपकरणों का ज्यादा से ज्यादा उपयोग करके पैदावार को बढ़ाती है। इसमें उर्वरक, शाकनाशी और कीटनाशकों जैसे रासायनिक पदार्थों की जरूरत नहीं पड़ती है।

  • मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार 

    रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के ज्यादा इस्तेमाल से मिट्टी के पोषक तत्व खत्म हो जाते हैं। नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम के तीन प्रमुख पौधों के पोषक तत्वों का सही अनुपात 4:2:1 है और यह बिगड़ चुका है। CEEW की एक रिपोर्ट (“क्या शून्य बजट प्राकृतिक खेती इनपुट लागत और उर्वरक सब्सिडी बचा सकती है- आंध्र प्रदेश से मिले सबूत”) ने दिखाया कि चावल की खेती करने वाले ZBNF किसान पारंपरिक किसानों की तुलना में 83-99% कम उर्वरकों का उपयोग कैसे करते हैं।

    Farmer using chemical-free fertilizers for natural farming
    प्राकृतिक खेती के लिए रासायनिक मुक्त उर्वरकों का उपयोग करते किसान
  • पर्यावरण का संरक्षण 

    कृषि गतिविधियाँ वैश्विक मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन का सबसे बड़ा हिस्सा पैदा करती हैं। पारंपरिक खेती में इस्तेमाल होने वाले उर्वरक वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का एक प्रमुख कारण हैं। प्राकृतिक खेती एक कृषि पारिस्थितिकी ढांचे पर काम करती है और रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों पर बिल्कुल भी निर्भर नहीं होती है।

  • लचीलेपन में सुधार 

    दुनिया भर में सूखा, गर्मी की लहर और बाढ़ के रूप में जलवायु परिवर्तन को महसूस किया जा सकता है। प्राकृतिक खेती के साथ उगाई गई फसलों ने इन परिस्थितियों के मुकाबले ज्यादा लचीलापन दिखाया है। यह बढ़ी हुई मिट्टी और पौधों की विविधता के कारण होता है। सीईईडब्ल्यू की एक रिपोर्ट (“सतत विकास लक्ष्यों के लिए शून्य बजट प्राकृतिक खेती आंध्र प्रदेश, भारत”) से पता चला है कि धान की फसलें 2017 में विशाखापत्तनम में चक्रवाती हवाओं द्वारा लाई गई हवाओं और जल-जमाव का सामना करती हैं। 2018 में आए पेठाई और तितली चक्रवात के बाद प्राकृतिक खेती वाली फसलें पारंपरिक फसलों के मुकाबले बेहतर स्थिति में मिली।

  • पानी की खपत को कम करना 

    दुनिया में उपलब्ध मीठे पानी का 70% हिस्सा कृषि के लिए उपयोग किया जाता है। भारत में ज़मीनी जल का उपयोग सिंचाई किए जाने वाले कुल क्षेत्र के 60% हिस्से की सिंचाई के लिए किया जाता है। प्राकृतिक खेती कम से कम पानी की खपत के लिए जानी जाती है। साथ ही यह मिट्टी की जल रोकने की क्षमता में भी सुधार करती है। यह भूजल भंडार को प्रभावित करता है।

    Indigenous Indian cows that provide manure used in natural farming
    प्राकृतिक खेती में इस्तेमाल होने वाली खाद उपलब्ध कराने वाली देशी भारतीय गायें
  • देशी पशुधन स्थिरता 

    प्राकृतिक खेती में जरूरी प्राकृतिक उर्वरकों (जीवमृत और बीजामृत), जड़ी-बूटियों और कीटनाशकों को बनाने के लिए गाय के गोबर और मूत्र का बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है। ज्यादातर किसान जो प्राकृतिक खेती अपनाते हैं वे संकर गायों, बैलों और भैंसों के बजाय देशी गायों की खाद और मूत्र पर निर्भर होते हैं। इस बढ़ते हुए चलन से भारत में पशुधन क्षेत्र को दोबार से शुरू किया जा सकता है।

  • किसान की आय में वृद्धि 

    प्राकृतिक खेती किसान की लागत को कम करता है। फिर चाहे वह रासायनिक कृषि आदानों की खरीद हो या सिंचाई। किसान आसानी से उपलब्ध चीजों से उर्वरकों और कीटनाशकों का काढ़ा तैयार करते हैं। प्राकृतिक खेती के साथ सिंचाई की लागत में कटौती की जा सकती है। इन सब के मिलने से किसानों का अधिक फायदा होता है।

    Farmer harvesting brinjals in natural farming
    प्राकृतिक खेती में बैंगन की कटाई करते किसान
  • किसान के स्वास्थ्य में सुधार 

    कीटनाशकों और उर्वरकों का उपयोग न केवल फसलों के लिए बल्कि इसे लगाने वाले के लिए भी खतरनाक हो सकता है। उच्च स्तर के रसायनों के संपर्क में आने वाले किसान गैर-संचारी बीमारियाँ जैसे क्रोनिक न्यूरोटॉक्सिसिटी, सांस संबंधी बीमारियों और यहां तक कि कैंसर को भी बढ़ा देते हैं। प्राकृतिक खेती रासायनिक इनपुट को प्राकृतिक इनपुट से बदल देता है जो किसान के स्वास्थ्य को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं।

विचार करने वाली बातें

बढ़ते जागरूक उपभोक्ता, बदलते खाने के तरीके (जैसे पौधे-आधारित प्रोटीन) और पर्यावरण जागरूकता की वजह से हम नई नीतियां देख रहे हैं और कृषि व्यवसाय में निवेश भी बढ़ रहा है। बढ़ती स्वास्थ्य जागरूकता भी उपभोक्ता के भोजन विकल्पों में एक अहम भूमिका निभा रही है। प्राकृतिक खेती अभी काफी चलन में है लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह अभी इसकी महज शुरुआत है। बेहतर बदलाव देखने के लिए अभी हमें और भी बहुत कुछ करना है। इसकी शुरुआत करने के लिए हमें अलग-अलग जलवायु परिस्थितियों के हिसाब से की जाने वाली प्राकृतिक खेती को वर्गीकृत करने की जरूरत है। साथ ही मानकों को भी निर्धारित करना होगा।

इस ओर अगली चुनौती है किसानों तक यह सब ज्ञान पहुँचाना। इसलिए ही बड़े ट्रेनिंग कार्यकर्मों का आयोजन किया जा रहा है। किसानों को ऐसे राज्यों के दौरे करवाना जहां पर प्राकृतिक खेती सफलतापूर्वक लागू है। इस क्षेत्र में डिजिटल कार्यक्रम भी शुरू किए जा सकते हैं।

भारत में प्राकृतिक खेती लंबे समय में लाभदायक है लेकिन पारंपरिक खेती से प्राकृतिक खेती पर आने के दौरान किसान की आय और पैदावार को नुकसान हो सकता है। किसानों को इनपुट सब्सिडी दी जा सकती है। इसी तरह किसानों को प्राकृतिक खेती अपनाने पर हुआ फसल के नुक्सान के लिए इंसेंटिव दिए जाने चाहिए।

व्यापारिक स्तर पर, प्राकृतिक खेती उपज को और भी ज्यादा लाभदायक बना सकती है। आजकल जैविक और प्राकृतिक खेती से उगाए गए खाद्य उत्पादों की काफी मांग है। हमें ऐसी मंडियों को पहचानने की जरूरत है जो प्राकृतिक खेती से उगाए गए उत्पाद बेचने का केंद्र बन सकती हैं। बीजक, आदि जैसे ऑनलाइन ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म का भी लाभ उठाया जा सकता है। इससे किसानों को आसानी से उद्यमी की भूमिका निभाने में मदद मिल सकती है।

प्राकृतिक खेती पर आपके क्या विचार हैं? यदि आप एक प्राकृतिक किसान या जैविक किसान हैं, तो हम आपसे इसके बारे में और सुनना चाहेंगे। बीजक के और भी बेहतर ब्लॉग पढ़ने के लिए हमारे साथ बने रहें। बीजक भारत का सबसे भरोसेमंद एग्रीट्रेडिंग प्लेटफॉर्म है जो देश भर के किसानों, खरीदारों (कमीशन एजेंटों) और सप्लायर को आपस में जोड़ता है। इस पर 150 से अधिक उत्पाद में रोजाना व्यापार होता है। साप्ताहिक अपडेट के लिए कृपया बीजक ब्लॉग को लाइक, शेयर और फॉलो करें।

स्रोत: Agriculturetoday , Niti Aayog , Natural Farming on Agricoop , Subhash Palekar: Founder Zero Budget Natural Farming in India , PIB , Niti Aayog , Zero Budget Natural Farming in India