भारत सरकार ने 13 मई को तत्काल प्रभाव से गेहूं के निर्यात पर रोक लगा दी थी। सरकार ने सभी प्रकार के गेहूं के निर्यात को ‘फ्री’ से ‘प्रोहेबिटेडट’ श्रेणी में डाल दिया है। पड़ोसी देशों में फूड सिक्योरिटी का हवाला देते हुए ये कदम उठाया गया है। हालांकि श्रीलंका जैसे मुश्किल में फंसे देशों को कृषि निर्यात पर रोक नहीं लगी है।
भारत दुनिया में गेहूं उत्पादकों की सूची में शीर्ष पर है। यूक्रेन-रूस युद्ध की वजह से ग्लोबल मार्केट में गेहूं की मांग बहुत बढ़ गई है। यूक्रेन और रूस अधिकतर देशों को गेहू निर्यात करते थे पर इस युद्ध की वजह से यह निर्यात रुक गया और गेहू की मांग की आपूर्ति नहीं हो पा रही। तो वही इस साल भारत में भी गेहूं की फ़सल थोड़ी कमज़ोर हुई है और इस वजह से देश गेहूं की मांग बढ़ गयी है। माना जा रहा है कि सरकार ने देश में गेहूं और आटे की बढ़ती कीमतों को काबू करने के मकसद से ही ये क़दम उठाया है।
निर्यात में उछाल
भारत ने वित्त वर्ष 2021-22 में कुल 70 लाख टन गेहू का निर्यात किया। केवल अप्रैल महीने में ही 14 लाख टन गेहूं का निर्यात किया गया। यूक्रेन-रूस युद्ध की वजह से भारत से गेहूं की मांग बढ़ी है वहीं इस साल फसल कम होने की वजह से गेहूं की सप्लाई कम है।
अप्रैल में उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति (CPI) 7.79 प्रतिशत पर पहुंचकर आठ साल के सबसे उच्च स्तर पर रही। वहीं, खुदरा खाद्य मुद्रास्फीति बढ़कर 8.38 प्रतिशत हो गई। गेहूं निर्यात पर रोक लगाने के पीछे एक कारण देश में बढ़ती ये महंगाई भी है।
गेहूं की खरीद में कमी
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, साल 2022-23 में, 14 मई तक सरकार ने मात्र 18 मिलियन टन गेहूं ही खरीद करी है। तो वही इसी समय में पिछले साल 36.7 मिलियन टन खरीदी की थी। यानी सरकार ने अबतक पिछले साल के मुकाबले 18.7 मिलियन टन कम गेहूं खरीद की है।
आधिकारिक डेटा के मुताबिक़, 8 मई 2022 को एक किलो आटे के दाम 33 रुपये था, जो पिछले साल इस समय के मुकाबले 13% ज़्यादा है।
गरमी बनी आफत
इस साल गेहूं की फ़सल कमज़ोर होने का सबसे बड़ा कारण मौसम है। मार्च के महीने में तापमान में हुई अचानक वृद्धि से फसलों को बहुत नुकसान पहुंचाया। मार्च में ही गेहूं की फसल में स्टार्च, प्रोटीन और अन्य शुष्क पदार्थ जमा होते हैं, इसके लिए 30 डिग्री सेल्सियस रेंज से ज़्यादा तापमान नहीं होना चाहिए। 30 डिग्री सेल्सियस में गेहूं की बालियों में दाने आने लगते हैं और उनका वज़न भी बढ़ने लगता है। लेकिन इस साल मार्च के मध्य में तापमान 35 डिग्री और महीने के अंत तक 40 डिग्री पार कर गया था। इस वजह से अनाज समय से पहले ही पक गए और दाने भी सिकुड़ते चले गए।
विदेशी देशों ने भारत के इस फ़ैसले पर अपनी असहमती जताई है। अब यह देखने वाली बात है कि भारत सरकार के इस रोक के फैसले से देश व अन्य देशों पर क्या असर पड़ेगा और क्या सरकार इस फ़ैसले पर पुनः विचार करेगी। अधिक जानकारी के लिए अग्रणी कृषि प्रौद्योगिकी ऐप डाउनलोड करें।