आम या मैंगीफेरा इंडिका (संस्कृत शब्द ‘मंजीरी’ से उत्पन्न) भारत का राष्ट्रीय फल है। यह भारत के अधिकतर लोगों का लोकप्रिय फल है। भारत के लगभग हर राज्य में इसे उगाया जाता है। आम को कच्चा या पका कैसे भी खाया जा सकता है। साथ ही इसका रस भी पिया जा सकता है या अचार, जैम आदि के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। आम की लकड़ी का उपयोग फर्नीचर बनाने में भी किया जाता है। इसकी पत्तियों और सूखी टहनियों का उपयोग अक्सर धार्मिक कार्यों के लिए किया जाता है। तो चलिए आज आम की कृषि मूल्य श्रृंखला की गहराइयों को समझते हैं। साथ ही जानते हैं कि ये ‘फलों का राजा’ हमारे खाने की टेबल तक का अपना सफर कैसे पूरा करता है।
आम का उत्पादन
आम के उत्पादन के शीर्ष 5 राज्य उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, बिहार, कर्नाटक और तेलंगाना हैं। यह पांच राज्य मिलकर भारत के कुल आम के उत्पादन में 60% का योगदान देते हैं। भारत में आम की करीब 1,500 किस्में उगाई जाती हैं जिनमें से लगभग 1,000 किस्मों को व्यावसायिक रूप से बेचा जा सकता है।
आम की खेती
आम की खेती गर्म जलवायु वाले क्षेत्रों में की जाती है। यही कारण है कि इन्हें पूरे भारत में सफलतापूर्वक कहीं भी उगाया जा सकता है। हालाँकि, जमीन से 600 मीटर से ऊपर के क्षेत्रों में आम की व्यावसायिक खेती करना संभव नहीं हो पाता है। आम के उत्पादन के लिए सबसे बेहतर होता है 75-375 सेंटीमीटर तक की अच्छी तरह से वितरित होने वाली बारिश और फूलों के खिलने से पहले का शुष्क मौसम। आम ऐसे क्षेत्र में नहीं रह सकते हैं जहां अत्यंत ठण्ड या गर्मी हो, साथ ही कम आर्द्रता या तेज़ हवाएं चलती हों।
आम तौर पर छोटे और सीमांत किसान (86.2% और 93.5% आम किसान ‘छोटे और सीमांत’ श्रेणी में आते हैं) जुलाई-अगस्त के बीच उच्च वर्षा वाले क्षेत्रों में आम लगाते हैं। वहीं फरवरी-मार्च के बीच सिंचित क्षेत्रों में आम लगाए जाते हैं। ये पौधे एक अच्छी ऊंचाई तक उगते हैं और 5-6 साल की उम्र में टहनियां विकसित करते हैं। तब तक, किसान अंतर-फसल उगाना शुरू कर देते हैं। इसमें आम के बगीचों में फलियां, सब्जियां, अनाज और यहां तक कि मिर्च जैसे मसाले भी उगाए जाते हैं। एक बार जब आम का पेड़ बड़ा हो जाता है तो वह करीब 35 साल तक फल दे सकता है।
आम के बाग अपने छठे साल से ही फल देना शुरू कर देते हैं। आम की पैदावार जलवायु, मिट्टी की गुणवत्ता, उर्वरकों, कीटनाशकों, सिंचाई आदि जैसी चीजों के आधार पर अलग-अलग होती है। औसतन एक आम के बगीचे में 5 से 9 टन प्रति एकड़ के बीच उपज होती है। हालांकि, अगर किसानों को फसल उगाने से पहले ही उर्वरक और कीटनाशकों की सही जानकारी मिलें तो यह उत्पादन और भी ज्यादा बढ़ सकता है।
पोस्ट हार्वेस्ट कांट्रेक्टर (PHC) का महत्व
PHC आमतौर पर आम मूल्य श्रृंखला के सबसे पहले हितधारक होते हैं। यह कटाई के समय से चार महीने पहले ही अलग-अलग किसानों के साथ एक कॉन्ट्रैक्ट कर लेते हैं। आमतौर पर किसान अपने उत्पादन और मार्केटिंग से जुड़े जोखिम PHC पर डाल देते हैं। अधिकतर किसान सीधे अपने उत्पादों की मार्केटिंग नहीं करते हैं। PHC, आम को मंडियों में ट्रांसपोर्ट करने से लेकर कमीशन एजेंट को बेचने तक के सभी चरणों में शामिल होते हैं। हालाँकि, निर्यातकों को आम बेचने के समय PHC उसमें शामिल नहीं होते हैं क्योंकि निर्यातक सीधे किसानों से ही आम खरीदते हैं।
फसल की कटाई के बाद की प्रक्रियाएं
कटाई और ग्रेडिंग
बाजार में जल्दी माल पहुंचाने के लिए आम की कटाई सीजन की शुरुआत में ही की जाती है। उन्हें हाथों से या डंडे का इस्तेमाल करके तोड़ा जाता है। कटाई के बाद, आमों को उनके आकार, रंग और वह कितने पके हैं इन आधारों पर ग्रेड किया जाता है। सब आम एक प्रकार पकें इसलिए यह सुनिश्चित किया जाता है कि छोटे और बड़े आमों को एक दूसरे से अलग-अलग रखा जाए। आमों को कैल्शियम कार्बाइड, एथिलीन गैस का उपयोग करके या इथरेल के घोल में डुबो कर पकाया जाता है। वहीं दूसरी ओर पहले से पके हुए आमों को इथरेल की कम मात्रा से पकाया जाता है।
भंडारण
हरे आमों को सामान्य तापमान में लगभग 4-10 दिनों तक रखा जा सकता है। उन्हें चावल के भूसे के बीच हवादार भंडारण सुविधाओं में रखा जाता है। अगर आमों का भंडारण ज्यादा समय के लिए करना होता है तो उनकी चयापचय दर को कम किया जाता है। ऐसा करने के लिए उन्हें फर्श पर फैलाकर या धान के भूसे में रखा जाता है। निर्यात की गुणवत्ता वाले आमों को आमतौर पर छांटकर पानी से साफ किया जाता है। फिर जैसे ही वह सूख जाते हैं तो उन्हें कोल्ड स्टोरेज में रखा जाता है। हर राज्य में आम भंडारण सुविधाओं के लिए अपने कुछ नियम हैं। साथ ही भंडारण के प्रकार (साधारण या कोल्ड स्टोरेज) और तरीकों को पहले ही सपष्ट किया गया है।
पैकिंग
परंपरागत रूप से आम को अक्सर लकड़ी के डब्बे, बांस के डब्बे या जूट की बोरियों में पैक किया जाता है। आज के समय में कार्डबोर्ड के डब्बे, प्लास्टिक क्रेट, पॉली बैग, प्लास्टिक से बने लचीले बोरे और खुले नेट वाली बोरियां भी उपलब्ध हैं। इनके अलावा फूस के डब्बे और शिपिंग कंटेनरों को भी आम की पैकिंग के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
ट्रांसपोर्ट
आमों को आमतौर पर ट्रकों, बैलगाड़ियों, ऑटो रिक्शा या मिनी ट्रकों में बगीचे से मंडियों तक पहुंचाया जाता है। दिन में अधिक गर्मी से बचने के लिए आमों को ज्यादातर रात में ट्रांसपोर्ट किया जाता है। आमों की अधिक संख्या होने पर लंबी दूरी के सफर के लिए रेल का इस्तेमाल किया जाता है। भारतीय रेलवे आम को खराब होने से बचाने के लिए एयर कंडीशन वाले कंटेनर भी प्रदान करती है। आम के निर्यात के लिए रेलवे के अलावा हवाई और जल ट्रांसपोर्ट का उपयोग किया जाता है।
व्यापार
हर राज्य में आम के महत्वपूर्ण बाजार हैं। आप हमारे पिछले ब्लॉग में मंडियों की सूची और उन मंडियों में बिकने वाली आम की शीर्ष किस्मों के बारे में जान सकते हैं। मंडियों में आम मुख्य रूप से थोक विक्रेताओं और कमीशन एजेंट को बेचे जाते हैं। इन बाजारों में आम आमतौर पर अप्रैल/मई में आते हैं और इन्हें अगस्त तक बेचा जाता है। इन आम को पहले स्थानीय मांग को पूरा करने के लिए बेचा जाता है और उसके बाद इन्हें दूसरे राज्यों की मंडियों में बेचा जाता है।
आम का प्रसंस्करण
आम कृषि मूल्य श्रृंखला में प्रसंस्करण एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आम की प्यूरी/गूदा एक चिकना और गाढ़ा उत्पाद होता है। इसे आम की कुछ खास किस्मों से इस तरह से निकाला जाता है कि पके हुए आम के रेशेदार भाग टूट जाते हैं। इस तरह यह फल के रस और रेशेदार पदार्थ के एक बड़े हिस्से को बरकरार रखता है। आम के गूदे या कॉन्संट्रेट का इस्तेमाल जूस, जैम, फ्रूट चीज़ और कई अन्य प्रकार के पेय प्रदार्थ बनाने के लिए किया जाता है। इसका इस्तेमाल खाद्य उद्योग में बड़े पैमाने पर किया जाता है। प्रसंस्करण आमों से कई ऐसे उत्पाद भी बन सकते हैं जो पूरे वर्ष तक खाने योग्य होते हैं। आम के गूदे के अलावा, आम का अचार, आम का चमड़ा, सूखे आम का पाउडर आदि जैसे उत्पाद भी आम के प्रसंस्करण से प्राप्त किए जा सकते हैं।
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स्रोत:
Agricultural Value Chains in India by Ashok Gulati, Kavery Ganguly, Harsh Wardhan
Report on Mango from nhb.gov.in
Mango Fruit Processing: Options for Small-Scale Processors in Developing Countries by Willis O. Owino and Jane L. Ambuko
Utilization Of Mango And Its By-Products By Different Processing Methods by Keshwani Deeksha and Sunita Mishra
Post Harvest Profile Of Mango by Ministry of Agriculture (Department Of Agriculture & Cooperation) Directorate Of Marketing & Inspection, Branch Head Office, Nagpur