भारत की लगभग हर रसोई में प्याज उपयोग किया जाता है। ऐसे भारतीय व्यंजन बहुत कम ही हैं जिनमें प्याज का उपयोग नहीं होता है। खाना बनाने के अलावा, प्याज का औषधीय महत्व भी है। लेकिन क्या आपने कभी यह सोचा है कि एक साधारण सा प्याज पूरे साल आपके पास कैसे पहुंचाया जाता है? प्याज कृषि मूल्य श्रृंखला (Onion Agri Value Chain) को बेहतर समझने के लिए हमने बीजक के ऑपरेशन डिपार्टमेंट के AVP, नवदीप व्यास से बातचीत की।
चीन के बाद भारत दुनिया में प्याज का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। भारत में प्याज की बहुत मांग है। घरेलू खपत के अलावा यहाँ प्याज की फसल की निर्यात मांग भी काफी है। प्याज मूल्य श्रृंखला में मुख्य रूप से किसान, सप्लायर, कमीशन एजेंट, थोक व्यापारी, रिटेलर और उपभोक्ता शामिल होते हैं। ऐसे कई लोग बीजक ऐप से भी जुड़े हुए हैं। यही वजह है कि नवदीप जी प्याज कृषि मूल्य श्रृंखला (Onion Agri Value Chain) से जुड़ी कई बारीकियों को जानते व समझते हैं। उनका कहना है –
यह “फार्म से उपभोक्ता तक” वाली रणनीति के जितना आसान नहीं है। इस प्रक्रिया के हर चरण में कई लोग शामिल होते हैं। हर एक चरण पर प्याज के उत्पाद का मूल्य बढ़ता जाता है।
पहला चरण – प्याज की खेती
नवदीप का कहना है, “प्याज की खेती खरीफ और रबी मौसम में होती है। खरीफ प्याज आमतौर पर जुलाई से अगस्त के बीच उगाये जाते हैं और अक्टूबर से दिसंबर के बीच काटे जाते है, जबकि रबी प्याज दिसंबर से जनवरी के बीच उगाये जाते हैं और मार्च से अप्रैल के बीच काटे जाते हैं। प्याज की खेती के लिए किसान विभिन्न तरह के कृषि आदान जैसे कि बीज, उर्वरक, कीटनाशक, श्रम आदि की कीमतों को ध्यान में रखते हैंं। आमतौर पर कटाई के बाद खरीफ प्याज में थोड़ी नमी होती है। इसलिए परिवहन से पहले उन्हें एक या दो सप्ताह (अधिकतम एक महीने) तक सुखाया जाता है। दूसरी ओर, रबी प्याज गर्मियों के दौरान काटें जाते हैं। इन प्याज में नमी ज्यादा होने की समस्या नहीं आती है। यही वजह है कि इन प्याज की हमेशा भारी मांग रहती हैं।”

भारत के मुख्य प्याज उत्पादक राज्य महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और कर्नाटक हैं। उच्च मिट्टी की गणवत्ता के कारण महाराष्ट्र में प्याज का सबसे अधिक उत्पादन होता है। नवदीप का कहना है, “भले ही भारत दुनिया में प्याज का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है लेकिन हमारी प्रति एकड़ उपज अमेरिका और चीन की तुलना में काफी कम है।” हमे प्याज उत्पादन में सदाबहार विजेता बनाने का श्रेय महाराष्ट्र की उच्च पैदावार को जाता है।
दूसरा चरण – इन्वेंटरी
प्याज की खेती के बाद इन्वेंट्री चरण आता है। इसमें फसलों की कटाई कर उन्हें भंडारण तक ले जाना भी शामिल होता है। इन खर्चों के अलावा प्याज का भंडारण अपने आप में ही एक बड़ा खर्च है।
“ज्यादातर भंडारण सुविधाएं एक से तीन लाख मीट्रिक टन प्याज ही स्टोर कर सकती हैं। इनका भंडारण शुल्क ₹7 प्रति किलोग्राम से शुरू होता है। हालांकि, जब प्याज को खराब होने से बचाने की बात आती इनमें से अधिकतर सुविधाएं उपयुक्त नहीं होती हैं। इसलिए भारतीय किसान भंडारण स्तर पर 15% प्याज ख़राब होने की उम्मीद रखते हैं और यह रकम उनकी कुल लागत में भी जुड़ जाती है।”
आमतौर पर प्याज के भंडारण अप्रैल तक भर दिए जाते हैं। अप्रैल के अंत तक वे प्याज बिक्री के लिए तैयार हो जाते है। इसके बाद प्याज अपने तीसरे चरण में जाते हैं। यहाँ पर बीजक की भूमिका शुरू होती है।

तीसरा चरण – मार्केटिंग
नवदीप के मुताबिक “व्यापार के लिए भंडारण खुलते ही प्याज को छांटकर बैग में डाला जाता है और पास की मंडियों में नीलामी के लिए ले जाया जाता है। इन सभी प्रक्रयाओं को करने के लिए मजदूरों की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए, प्याज आमतौर पर खेतों और अस्थायी केंद्रों में मजदूरों द्वारा छांटे और वर्गीकृत किए जाते हैं। यदि मशीन छँटाई का उपयोग हुआ हो, तो प्याज को ऐसे पैकिंग और ग्रेडिंग केंद्रों पर भेजा जाता है जहाँ मशीनरी उपलब्ध हो। इसके बाद बारी आती है पैकेजिंग की। छँटाई के बाद प्याज को 50 किलो के बैग में पैक किया जाता है। ये बैग नायलॉन या जूट के बने होते हैं। जूट के बैग प्याज में नमी नहीं आने देते हैं। यही वजह है कि उन्हें परिवहन के लिए आदर्श माना जाता है। हालांकि इनकी कीमत नायलॉन के जाली वाले बैग से अधिक होती है, इसलिए प्याज व्यापारिओं के लिए यह एक व्यावसायिक निर्णय बन जाता है”

व्यापार
भले ही महाराष्ट्र प्याज का सबसे बड़ा उत्पादक है, प्याज का सबसे ज्यादा इस्तेमाल दक्षिण भारतीय राज्य तेलंगाना, कर्नाटक और तमिलनाडु में होता है। यही वजह है कि इन राज्यों की मंडियों में प्याज का निरंतर प्रवाह होता है।
जैसे ही प्याज मंडियों में पहुंचते हैं जोर-शोर से उनका कारोबार शुरू हो जाता है। नवदीप कहते हैं, ”हर मंडी में प्याज की खपत की एक खास दर होती है। उदाहरण के लिए, एक ट्रक में 25 से 30 टन प्याज होता है। अगर हम हैदराबाद की मलकपेट मार्केट की बात करें तो वहां इस तरह के 60 से 80 ट्रक प्रतिदिन लग जाते हैं। अगर आने वाले ट्रकों की संख्या इससे कम होती है तो प्याज के दाम भी बढ़ जाते हैं। इसी तरह से हर मंडी की समिति एक न्यूनतम बोली दर निर्धारित करती है। आमतौर पर इन बोली दरों के आधार पर प्याज की नीलामी की जाती है। फिर कमीशन एजेंट द्वारा वसूले जाने वाला कमीशन प्रतिशत, सप्लायर को भुगतान की गई बिल्टी, और नीलामी सेट-अप आदि जैसे अन्य खर्चों को ध्यान में रखा जाता हैं। इसी तरह से प्याज की नीलामी हो जाने के बाद अंतिम खरीदार अपना लाभ मार्जिन जोड़कर उसे आगे बेचता है।

यह है प्याज की कृषि मूल्य श्रृंखला। हर एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया प्याज की लागत में इजाफा करती है ताकि जब तक किसान की फसल जिसकी कीमत लगभग ₹4-6 प्रति किलोग्राम है, तब तक उसकी कीमत दो अंकों में हो। अगली बार जब आप रसोई में बैठे प्याज को देखेंगे, तो हम उम्मीद करते हैं कि आप अपनी थाली तक पहुँचने के लिए किए गए लंबे सफर की सराहना करेंगे। हमें उम्मीद है कि आपको यह ब्लॉग अच्छा लगा होगा। नीचे अपना कमेंट करें। साथ ही, भविष्य में बीजक विशेषज्ञों के नए ब्लॉग के लिए हमारे साथ बने रहें।
बीजक भारत का सबसे भरोसेमंद एग्रीट्रेडिंग ऐप है। इसमें किसानों, खरीदारों, (कमीशन एजेंटों) और सप्लायर का एक बढ़ता हुआ नेटवर्क है जो 150 से अधिक उत्पाद में व्यापार की करता है। आप ऐप को Google Playstore और Apple App Store से डाउनलोड कर सकते हैं। इस लेख को अपने दोस्तों के साथ लाइक और शेयर करें और नए अपडेट प्राप्त करने के लिए बीजक ब्लॉग को सब्सक्राइब करें।