भारत में प्याज की खेती का इतिहास 5000 सालों का है। आज भारत प्याज के उत्पादन में चीन के बाद विश्व में दूसरे नंबर पर है। हमारे देश के प्याज अपने तीखेपन के लिए जाने जाते हैं। ये खाने के लिए साल भर उपलब्ध रहते हैं। भारत में मुख्य रूप से तीन प्याज उगाने वाले मौसम हैं – खरीफ (जुलाई-अगस्त), देर-खरीफ (अक्टूबर-नवंबर), और रबी (दिसंबर-जनवरी)।
इस आर्टिकल में हम भारत में अपनाई जाने वाली विभिन्न प्याज की खेती की तकनीक के बारे में जानेंगे।
प्याज उगाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली तकनीक
प्याज को तीन तरीके- बीज, अंकुर, और बलब्लेट से उगाया जा सकता है। आईए प्याज की खेती में उपयोग होने वाली तीन प्रमुख (onion cultivation techniques) तकनीकों पर नज़र डालते है।
1. नर्सरी पालन
प्याज की खेती के लिए दो महत्वपूर्ण तरीके हैं। पहला नर्सरी मैनेजमेंट और दूसरा प्रत्यारोपण (transplantation)। प्याज के बीज आमतौर पर 1.2 मीटर चौड़ाई और 3-4 मीटर लंबाई के उठे हुए बेड पर बोए जाते हैं। जैसे ही ये बीज (40-45 दिनों में) अंकुर में बदल जाते हैं, इन्हें प्याज में विकसित होने के लिए उखाड़कर दूसरी जगह पर प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। 0.05 हेक्टेयर नर्सरी बेड में तैयार की गई पौध से एक हेक्टेयर के खेती युक्त जमीन में रोपने लायक पौध मिल जाती है।
पानी समान रूप से बहने के मकसद से प्याज की क्यारियों के बीच की दूरी कम से कम 30 से.मी. रखी जाती है। इससे अतिरिक्त पानी निकालने में भी मदद मिलती है। नर्सरी में प्याज के उगाने के लिए फ्लैट बेड का इस्तेमाल सही नहीं माना जाता है क्योंकि ऐसे में जब पानी एक छोर से दूसरे छोर तक जाता है तो बीजों के धुलने की संभावना बढ़ जाती है।
2. छोटे बलब्लेट
आमतौर पर इस तकनीक को हरे प्याज की मांग को पूरा करने के लिए अपनाया जाता है। प्याज की एग्रीफाउंड डार्क रेड, अर्का कल्याण, बसवंत 780, आदि किस्मों को छोटे बलब्लेट में बदलने के लिए एक सीजन पहले ही उगा दिया जाता है। अगर अच्छी गुणवत्ता वाले प्याज प्राप्त करने हो तो बीज बोने के लिए मध्य जनवरी से फरवरी तक का समय बेहतरीन माना जाता है। हालांकि, सही मौसम और समय जहां बीज बोए जाने हैं उस क्षेत्र पर भी निर्भर करता है। अप्रैल-मई तक इन प्याज के बलब्लेट को नर्सरी बेड में रखा जाता हैं। काटे गए प्याज को एक हवादार जगह में लटका दिया जाता है और उसी व्यवस्था में स्टोर कर दिया जाता है। फिर इन्हें खरीफ मौसम में प्रत्यारोपित किया जाता है।
3. सीधे बुआई
प्याज उगाने की यह विधि कर्नाटक के चित्रदुर्ग, बेल्लारी और धारवाड़ जिलों के कुछ हिस्सों में प्रचलित है। बड़े प्याज के बीज 30 सेंटीमीटर की दूरी पर पंक्तियों में बोए जाते हैं। इनमें से कुछ पौधों को बाद में निकाल दिया जाता है ताकि बल्बों के विकास के लिए उचित स्थान मिल सके। बीज बोने के बाद हाथ से गुड़ाई की जाती है ताकि बीज 2.5-3 सेमी की गहराई तक पहुंच सके। इसके तुरंत बाद इनकी हल्की सिंचाई की जाती है। पौधों को रोपने के दस दिनों के बाद खर-पतवार को निकालना भी बहुत जरुरी काम है।
प्याज उगाने के लिए जमीन की तैयारी
- किसी भी प्रकार की मिट्टी के ढेले और मलबे से बचने के लिए खेत को 5-6 बार जोता जाता है
- अंतिम बार जोतते हुए 75 किग्रा/हेक्टेयर के बराबर जैविक खाद का प्रयोग किया जाता है।
- मिट्टी को समतल करने के बाद उपयुक्त आकार की क्यारियों को तैयार किया जाता है।
- खरीफ या बरसात के मौसम में जल भराव से बचने के लिए फ्लैट बेड से बचा जाता है। जल भराव से एन्थ्रेक्नोज नामक बीमारी को बढ़ावा मिलता है जो खरीफ मौसम के दौरान प्याज की फसलों के लिए सबसे ज्यादा नुकसानदायक होती है।
- फसलों के बीच उचित दूरी बनाने के लिए 15 सेमी ऊंचाई और 45 सेमी चौड़ाई की चौड़ी क्यारी (BBF) बनाई जाती है। यह ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई के लिए भी उपयुक्त होती है। खरीफ के समय प्याज उत्पादन का यह सबसे अच्छा तरीका है क्योंकि इस विधि में अतिरिक्त पानी को नाली के माध्यम से बाहर निकाला जाता है।
ऊपर बताए गए सभी तरीके भारतीय किसानों द्वारा इस्तेमाल किए जाते हैं। यहाँ तक कि प्याज उत्पादन में भारत दुसरे नंबर पर आता है। भारत के शीर्ष प्याज उत्पादक राज्यों का इन्फोग्राफिक यहाँ देखें।
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